ग्रहण काल में किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों, BR Emporium

चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण: धार्मिक अनुष्ठानों का महत्व और पालन करने योग्य नियम

BR Emporium

भारतीय संस्कृति में चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण को केवल खगोलीय घटनाएँ नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर माना गया है। ये दोनों ग्रहण जीवन में शुभ-अशुभ प्रभाव डालने वाले होते हैं और इनसे संबंधित अनेक धार्मिक मान्यताएँ, अनुष्ठान और सावधानियाँ होती हैं।

ग्रहण काल को तामसिक ऊर्जा से युक्त माना जाता है, लेकिन यह आत्मशुद्धि, ध्यान, जाप और तप के लिए भी अत्यंत लाभकारी समय होता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि ग्रहण काल के दौरान क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, कौन-कौन से धार्मिक अनुष्ठान इस काल में करने चाहिए और BR Emporium इसमें आपकी कैसे सहायता कर सकता है।

ग्रहण क्या होता है?

जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आते हैं, तो उस स्थिति को ग्रहण कहा जाता है। यदि पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाए, तो वह चंद्र ग्रहण कहलाता है। वहीं जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आता है और सूर्य का प्रकाश आंशिक या पूर्ण रूप से ढक जाता है, तो उसे सूर्य ग्रहण कहते हैं।

ग्रहण काल में आध्यात्मिक महत्व

हिंदू धर्म के अनुसार, ग्रहण काल में वातावरण में तामसिक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। इसी कारण ग्रहण को शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है। हालांकि, यह समय आत्मचिंतन, भक्ति, जप-तप और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत उपयुक्त होता है।

ग्रहण से पहले की तैयारी

  • ग्रहण शुरू होने से पूर्व भोजन और जल का सेवन कर लेना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
  • ग्रहण से पूर्व ही देवताओं की मूर्तियों को ढंक देना चाहिए।
  • घर के सभी खाद्य पदार्थों में तुलसी का पत्ता डाल देना चाहिए।

ग्रहण काल में क्या करें?

  • मंत्र जाप: यह काल विशेष रूप से मंत्रों के जाप, ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त है। "ॐ नमः शिवाय", "ॐ विष्णवे नमः", "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" जैसे मंत्रों का जाप करें।
  • व्रत: कई लोग ग्रहण काल में व्रत रखते हैं, जो मानसिक और आत्मिक शुद्धि प्रदान करता है।
  • गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय जाप जैसे मंत्रों का उच्चारण विशेष रूप से लाभकारी होता है।
  • दान: ग्रहण समाप्ति के बाद जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, तांबे, रुद्राक्ष, व्रत संबंधी सामग्री दान करना शुभ होता है।

ग्रहण काल में क्या न करें?

  • ग्रहण के समय भोजन, जल और स्नान से बचना चाहिए।
  • मूर्तियों का स्पर्श या पूजन नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाएं नुकीली वस्तुओं का उपयोग न करें, धागा काटना वर्जित है।
  • सोना, बाल काढ़ना, कपड़े धोना आदि कार्य भी ग्रहण काल में निषेध माने जाते हैं।

ग्रहण के बाद क्या करें?

  • स्नान: ग्रहण समाप्ति के बाद शुद्ध जल से स्नान करें।
  • पूजा: घर के मंदिर को पुनः पवित्र कर के दीप जलाएं और आरती करें।
  • दान: तांबा, रुद्राक्ष, भोजन, वस्त्र आदि का दान करें।
  • मंत्र जाप: कुछ समय के लिए मंत्र जाप और ध्यान करें ताकि आध्यात्मिक लाभ मिले।

BR Emporium की भूमिका

BR Emporium में उपलब्ध हैं शुद्ध तांबे के कलश, मंत्रजप माला, रुद्राक्ष, तुलसी माला, सप्त धातु दीपक और पूजा थालियाँ, जो ग्रहण के समय के पूजन और अनुष्ठानों में अत्यंत उपयोगी हैं। हमारे उत्पाद वैदिक रीति से शुद्ध किए गए हैं और ग्रहण जैसे शुभ अवसरों पर आत्मिक बल और शुद्धता प्रदान करते हैं।

ग्रहण और ज्योतिषीय प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण का संबंध राहु और केतु से जोड़ा जाता है। माना जाता है कि ग्रहण के समय इन छाया ग्रहों की शक्ति अत्यंत प्रभावशाली होती है, और इस समय किए गए जप-तप कई गुना फलदायी होते हैं। ग्रहण के बाद विशेष रूप से सूर्य या चंद्रमा के कमजोर होने पर उनकी शांति हेतु विशेष उपाय किए जाते हैं।

गर्भवती महिलाओं के लिए सावधानियाँ

  • ग्रहण काल में घर से बाहर न निकलें।
  • धातु के छल्ले या रुद्राक्ष पहनें जिससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम हो।
  • BR Emporium द्वारा तैयार की गई विशेष सुरक्षा माला या ताबीज का उपयोग करें।
  • ध्यान, जाप और भगवन्नाम का उच्चारण करें।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण

ग्रहण को केवल डर या अपशकुन के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर समझना चाहिए जब आत्मा परमात्मा के अधिक समीप होती है। यह समय हमारे भीतर के अज्ञान को खत्म करने और आत्मबोध की ओर बढ़ने का सुनहरा अवसर होता है।

निष्कर्ष

चंद्र और सूर्य ग्रहण हमारे जीवन में आध्यात्मिक अनुशासन और शुद्धि का अवसर प्रदान करते हैं। यदि इन समयों का सही ढंग से उपयोग किया जाए, तो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन संभव हैं। BR Emporium का लक्ष्य है आपको इन शुभ अवसरों पर आवश्यक सभी धार्मिक और पूजात्मक वस्तुएं प्रदान करना, ताकि आप घर पर ही शुद्ध और सटीक रूप से ग्रहणकालीन अनुष्ठान कर सकें।

तो अगली बार जब भी ग्रहण आए, उसे केवल खगोलीय घटना न मानें — उसे आत्म-शुद्धि का अवसर समझें।

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