
निर्जला एकादशी
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निर्जला एकादशी, हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण एक व्रत है जो ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। “निर्जल” शब्द संस्कृत में “बिना जल” का अर्थ होता है, इसलिए इस एकादशी को “निर्जला” एकादशी कहा जाता है क्योंकि इस व्रत में निर्जला यानि भूक और पानी के बिना रहना पड़ता है।
निर्जला एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और यह सभी एकादशी में सबसे उत्तम माना जाता है। इस व्रत को निष्काम भक्ति, त्याग और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। निर्जला एकादशी को अपनाने से व्रतार्थी अपने पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति प्राप्त करते हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करते हैं।
इस व्रत के दौरान व्रतार्थी निर्जला भोजन यानि भोजन करने से त्याग करते हैं और पूरे दिन बिना भोजन और पानी के रहते हैं। यह व्रत सख्त होता है और व्रतार्थी को रात्रि में जागरण करना चाहिए। व्रतार्थी श्रीहरि विष्णु की पूजा करते हैं, विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र रचना करते हैं और विष्णु की कथा सुनते हैं।
निर्जला एकादशी का महत्व है कि इसे अपनाने से व्रतार्थी के पापों का नाश होता है और उन्हें आनंद, सुख और धन प्राप्ति की प्राप्ति होती है। यह व्रत शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का सशक्त तरीका है और व्रतार्थी को ईश्वर के साथ अधिक समीप लाता है।
इस प्रकार, निर्जला एकादशी हिन्दी धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है और यह व्रतार्थी को आध्यात्मिक और शारीरिक उन्नति प्रदान करने का माध्यम है।